भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
उनकी गली से होश था उठने का भी किसे!
दुनिया हमीं को हमींको आँख दिखाए तो क्या करें!
भाती नहीं हो जिसको पँखुरियाँ गुलाब की
उसको ग़ज़ल भी रास न आये तो क्या करें!
<poem>