भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
जिया है प्यार जहाँ ज़िन्दगी थी हार गयी
किसी के किसीके रूप का उन्माद कैसे भूले कोई!
पिघलती आग-सी सीने के आर-पार गयी
पलट के पलटके देखा जो तुमने लजीली आँखों से
लगा कि फिर से मुझे ज़िन्दगी पुकार गयी
घिरी घटा मेरी आँखों से होड़ लेती हुई
बड़े बड़ी ही शान से आई थी, तार-तार गयी
जहाँ-जहाँ थी, क़सम प्यार की खाई तुमने
2,913
edits