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लटों को उलझी हुई ज़िन्दगी की सुलझाते
किसी का किसीका हाथ जो थक जाय, क्या करे कोई!
गुलाब छिपके भी रह लेंगे डालियों में मगर
नज़र जो उनकी अटक जाय, क्या करे कोई!
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