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|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
|संग्रह=कुछ और गुलाब / गुलाब खंडेलवाल
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<poem>
पिएगा छक के कोई, कोई घूँट भर को तरसेगा
ये नूर पर तेरे चेहरे से यों ही बरसेगा
 
गले से लग के नहीं हिचकियाँ रुकेंगी अब
बरसने आया है बादल तो जमके बरसेगा
 
अभी तो राह में काँटे बिछा रहा है, गुलाब!
कभी ये बाग़ तुझे देखने को तरसेगा
<poem>
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