भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
माना कि यह ख़त हाथ में लेकर उसने इसे फिर फाड़ भी डाला
लौटनेवाले ! हमको बता दे, उसका कोई सन्देश तो होगा?
हमको तड़पता देखके भी क्या तू ये नज़र मोड़े ही रहेगा?
लाख है पत्थर , दिल में मगर कुछ प्यार का भी लवलेश तो होगा!
रंग गुलाब का उड़ने लगा है, लौट रही हैं शोख़ हवायें
जिसमें हमें पहचान ले दुनिया, ऐसा भी कोई वेश भेष तो होगा?
<poem>