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ज़िन्दगी की किताब ख़त्म हुई
मुड़ के मुड़के देखा न हाशिया तुमने!
हमने माना कि मिल न पाये गुलाब
दिल तो ख़ुशबू से भर दिया तुमने
<poem>
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