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|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
|संग्रह=पँखुरियाँ गुलाब की / गुलाब खंडेलवाल
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[[category: ग़ज़ल]]
<poem>
कौन जाने उस तरफ कोई किनारा हो, न हो!
मिल भी जाओ आज, कल मिलना हमारा हो, न हो
रात भर जंगल-पहाडों में भटकता फिर रहा
है हमीं-सा चाँद भी किस्मत का मारा हो न हो!
हमसे छिप सकती नहीं रंगत किसीके प्यार की
दिल तो धड़का है, निगाहों का इशारा हो, न हो
आज तो मिलती है उन आँखों की ख़ुशबू दूर से
क्या पता कल राह में यह भी सहारा हो, न हो!
यों तो शोभा बढ़ गयी इस बाग़ की तुझसे, गुलाब!
प्यार की शोख़ी मगर उनको गवारा हो, न हो!
<poem>