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Kavita Kosh से
हमसे मोड़े ही मुँह तू रही, ज़िन्दगी! छोड़ भी जान अब अपने घर जायँ हम
रात काँटों पे करवट बदलते कटी, हमको दुनिया ने पलभर पल भर न खिलने दिया
आयेंगे कल नए रंग में फिर गुलाब, आज चरणों पे उनके बिखर जायँ हम
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