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|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
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[[category: ग़ज़ल]]
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दिये तो हैं रोशनी नहीं है, खड़े हैं बुत ज़िन्दगी नहीं है
ये कैसी मंज़िल पे आ गए हम, कि दोस्त हैं, दोस्ती नहीं है

चमक रहे हैं हज़ारों तारे, भले ही हैं चाँद और सूरज
तलाश है जिस किरन की हमको, बस एक समझो वही नहीं है

बुझा-बुझा सर्द -सर्द-सा कुछ, है अब भी सीने में दर्द-सा कुछ
पड़े हैं मुँह ढँक के हम भले ही, मगर तबीयत भरी नहीं है

हम अक्स हैं तेरे आइने के, कभी तो बढ़कर गले लगा ले
रहे हों ख़ामोश, प्यार की पर हमारे दिल में कमीं नहीं है

गुलाब! जिसने भी हँसके देखा, उसीके तुम उम्र भर रहे हो
जो सच कहें तो सभी हैं अपने, यहाँ कोई अजनबी नहीं है
<poem>
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