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{{KKRachna
|रचनाकार=एम० के० मधु
|संग्रह=बुतों के शहर में/ एम० के० मधु
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<poem>
मेरी आंखों आँखों में
तैरते हैं शब्द
तुम्हारे लिए
पढ़ सको तो पढ़ लो
मेरी सांसों साँसों परबजते हैं बजता है संगीत
तुम्हारे लिए
सुन सको तो सुन लो
तुम्हारे लिए
मेरी बाहेंबाँहें
बढ़ चुकी हैं
बांध बाँध सको तो बांध बाँध लो
एक संपूर्ण भाव
बहती नदी, चंचल झरना
घुमक्कड़ राही, औघर औघड़ मन
समझ सको तो समझ लो
प्यार का पहर है
कारवां गुजर कारवाँ गुज़र न जाएरोक सको तो रोक लो।लो ।
</poem>
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