भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
ताब थी क्या लहरों की डुबा दें, नाव को डर तूफ़ान का कब था!
जिनके लिए हम मौत से जूझे, खुद ख़ुद वे किनारे ही हुए दुश्मन
रूप की हर चितवन में बसे हम, प्यार की हर धड़कन है हमारी
किसको गुलाब का रंग न भाया, किसमें नहीं काँटों की है कसकन!
<poem>