भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
जो हमको दिखाते हो, तमाशा तो नहीं है
आते हैं किस अदा से वे घर पे पर हमारे आज
कहते हुए, 'आने का इरादा तो नहीं है!'