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Kavita Kosh से
दिल में कुछ और भी यादों की कशिश बढ़ जाती
तुम जो मिलते भी तो आखिर आख़िर यही रोना होता
जानते हम , ये हवा रास न आयेगी, गुलाब!
भूलकर भी न क़दम बाग़ में रखा होता!
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