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Kavita Kosh से
बुझा-बुझा सर्द -सर्द-सा कुछ, है अब भी सीने में दर्द-सा कुछ
पड़े हैं मुँह ढँक के ढँकके हम भले ही, मगर तबीयत भरी नहीं है
हम अक्स हैं तेरे आइने के, कभी तो बढ़कर गले लगा ले
रहे हों ख़ामोश, प्यार की पर हमारे दिल में कमीं कमी नहीं है
गुलाब! जिसने भी हँसके देखा, उसीके तुम उम्र भर रहे हो
जो सच कहें तो सभी हैं अपने, यहाँ कोई अजनबी नहीं है
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