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Kavita Kosh से
कभी तो मैं भी अदाओं का तेरा था हमराज़
नहीं किसी से किसीसे भी मिलता है अब मिजाज़ इसका
कुछ इस तरह था छुआ उसने मेरे दिल का ये साज़
पता नहीं कि कहाँ रात गिरी थी बिजली!
गुलाब! बाग़ में क्या-क्या न गुल खिलाता है