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Kavita Kosh से
गले से आके जो लगते रहे हैं सारी रात!
जो बेजले ही सुलगते रहे हैं सारी रात
कभी तो पायेंगे काग़ज़ गुलाब की रंगत
हम अपने ख़ून से रंगते रहे हैं सारी रात
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