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शाम का वक़्त है शाख़ों को हिलाता क्यों है:
तू थके माँदे परिंदों को उड़ाता क्यों है
स्वाद कैसा है पसीने का ये मज़दूर से पूछ:
छाँव में बैठके अंदाज़ा लगाता क्यों है