भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
शाम का वक़्त है शाख़ों को हिलाता क्यों है: 
तू थके माँदे परिंदों को उड़ाता क्यों है
स्वाद कैसा है पसीने का ये मज़दूर से पूछ: 
छाँव में बैठके अंदाज़ा लगाता क्यों है
मुझको सीने से लगाने में है तौहीन अगर
 
दोस्ती के लिये फिर हाथ बढ़ाता क्यों है
मुस्कुराना है मेरे होंठों की आदत में शुमार
 
इसका मतलब मेरे सुख-दुख से लगाता क्यों है