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{{KKRachna
|रचनाकार=शहंशाह आलम
|संग्रह=वितान
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
मैं नदी किनारे बैठा हूं
और इंतज़ार कर रहा हूं
मछलियों के ऊपर आने का
मैं पार्क में टहल रहा हूं और देख रहा हूं
युवक-युवतियों को प्रेम करते हुए
मैं चैत की कविता लिख रहा हूं
मैं भाद्रपद मास के दोहे गढ़ रहा हूं
और सुना रहा हूं पत्नी को
मैं रेलवे स्टेशन बस स्टॉप
हवाई पट्टी पर खड़ा हूं
और प्रतीक्षा कर रहा हूं
अपने किसी बेहद प्रिय के
अचानक आ जाने की
मैं बैठा हूं मैं टहल रहा हूं
मैं कविता लिख रहा हूं
मैं दोहे गढ़ रहा हूं
मैं प्रतीक्षा कर रहा हूं
अभी मुझ में जीवन शेष है।
</poem>
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|रचनाकार=शहंशाह आलम
|संग्रह=वितान
}}
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मैं नदी किनारे बैठा हूं
और इंतज़ार कर रहा हूं
मछलियों के ऊपर आने का
मैं पार्क में टहल रहा हूं और देख रहा हूं
युवक-युवतियों को प्रेम करते हुए
मैं चैत की कविता लिख रहा हूं
मैं भाद्रपद मास के दोहे गढ़ रहा हूं
और सुना रहा हूं पत्नी को
मैं रेलवे स्टेशन बस स्टॉप
हवाई पट्टी पर खड़ा हूं
और प्रतीक्षा कर रहा हूं
अपने किसी बेहद प्रिय के
अचानक आ जाने की
मैं बैठा हूं मैं टहल रहा हूं
मैं कविता लिख रहा हूं
मैं दोहे गढ़ रहा हूं
मैं प्रतीक्षा कर रहा हूं
अभी मुझ में जीवन शेष है।
</poem>