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Kavita Kosh से
मगर कुछ अपने भी प्यार के ग़म छिपाके ग़ज़लों में रख रहे हैं
कभी तो पहुँचेगी पहुँचेंगीं तेरे दिल तक हवा में उड़ती हुई ये तानें
हम अपनी दीवानगी का आलम छिपाके ग़ज़लों में रख रहे हैं
बिके तो राहों में ज़िन्दगी की न भूल पाए हैं पर तुझे हम
ख़ुद अपनी उस ख़ुदकुशी का आलम मातम छिपाके ग़ज़लों में रख रहे हैं
जो तू सुरों में सजा रहा है हमारे सीने की धड़कनों को