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सुरभि, पँखुरियों का उन्मीलन, सबने मुग्ध नयन से देखा
सींचा पाटल-मूल किसी नेकिसीने, लांघ लाँघ कुटिल काँटों की रेखा!
वह तो करुणा-दृष्टि तुम्हारी, अनल-शिखा जलधार बन गयी
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