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::::'''सवैया'''<br><br>
झलकै अति सुन्दर आनन गौर, छके दृग राजत काननि छ्वै।<br>
हँसि बोलन बोलनि मैं छबि फूलन की बरषा, उर ऊपर जाति है ह्वै।<br>लट लोल कपोल कलोल करैकरैं, कल कंठ बनी जलजावलि द्वै।<br>अंग अंग तरंग उठै दुति की, परिहे मनौ रूप अवै अबै धर च्वै।।2।।च्वै।।4।।<br>
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