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Kavita Kosh से
तिमिर भी जलता मुझे छू हाय
पवन कंपित साँस से बुझता नखत-समुदाय
कौन ले जाए उड़ा प्रिय तक हृदय का मान!
मैं अमाँ की एक विस्तृत तान
चंद्रिका जिसकी नहीं जिसका न स्वर्ण-विहान
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