भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
इस जलते जीवन का प्रमाद
मैं किसे सौंप दूँ, प्राणों की, यह गहन विकलता, यहह यह विषाद?
रानी तुम हो, यह मधु रजनी
पुलकित दिगंत, सुरभित अवनी
आकांक्षाओं का स्वर्ण-इंदु
दुःख में भी भरता मधुर स्वाद
इस जलते जीवन का प्रमाद
मैं किसे सौंप दूँ, प्राणों की, यह गहन विकलता, यहह यह विषाद?
<poem>