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छवि को सदन मोद मंडित / घनानंद

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::::'''कवित्त'''<br><br>
छवि को सदन मोद मंडित बदन-चंद<br>
::तृषित चखनि चषनि लाल, कब धौ कबधौ दिखाय हौ।<br>चटकीलो भेख चटकीलौ भेष करें मटकीली भाँति सों हीसौही<br>
::मुरली अधर धरे लटकत आय हौ।<br>
लोचन ढुराय कछु मृदु मुसक्यायमुसिक्याय, नेह<br>
::भीनी बतियानी लड़काय बतराय हौ। <br>
बिरह जरत जिय जानि, आनि प्रानप्यारेप्रान प्यारे,<br>::कृपानिधि, आनंद को धन बरसाय हौ।।3।।हौ।।5।।<br>
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