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Kavita Kosh से
तुम्हारी ही यादों की लौ जल रही थी
दिवाली के जब भी दिए दिये जगमगाये
कभी अपने हाथों सँवारा था तुमने
गुलाब आज तक वैसे खिल ही न पाये
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