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मैं स्वयं कमल-धृत-बिंदु, सिन्धु से नहीं भेंट
इस महायंत्र को कब जाने किसने उमेठ
धर दिया शून्य -सागर में?
'एकोऽहम् बहुस्याम' कब किसने मन्त्र बोल
मैं चिर अनादि- से एकाशन शासन-तत्पर
मुझसे तो अच्छे देव, मनुज हँसकर रोकर
सुख-दुःख दुख में लेते जो नूतन आकृतियाँ धर
चढ़ जन्म-मरण-दोलों पर
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