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घट पर से बहते जल में असफल मीन-चयन
बन गयी सहज जय-ध्वजा मयन की ज्योति-अयन
मुक्तालक-जित घनमाला
खोयी-खोयी-सी चिर निरर्थ-मन, यहाँ-वहाँ
लौटी कुटीर में शेष त्रियामा निशा जहाँ
'ऋषि लौटे निशि-भ्रम जान कि प्रिय प्राणों में स्थित?
कटंकित, अपरिचित नि:श्वासों से आकर्षित
सर्वांग शिथिल, भय-कातर
अवसन्न गौतमी, झलका ज्यों दव-सा समक्ष
'यह इंद्रजाल रच रहा कौन गन्धर्व, यक्ष?
कानों से लग बोले दृग-मधुकर, दंश-रूप
आया कुसुमित शर ले अरूप वह बाल-भूप
बह चली वायु अनुकूला
सुगठित भुज-पट्ट, कपाट-वक्ष, हिम-गौर स्कंध
तनु तरुण भानु-सा अरुण, स्रस्त-तूणीर-बंध
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