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'ताड़िका-सुबाहु-विजय की इनसे करूँ चाह!'
संशय, भय, विस्मय जागे   
. . .
'ये मृदुल अल्प-वय बाल कमल के दल जैसे
देखा विराट् विभु-रूप सामने महाकार
क्षिति-भार-हरण, भव-शरण-वरण, जन-हृदय-हार
सुर-नर-विधि-हरि-हर-पूजित  
हिल्लोलित जलनिधि चरणों पर खाता पछाड़
ब्रह्माण्ड कोटि प्रति रोम, त्रस्त गिरते पहाड़
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