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{{KKRachna
|रचनाकार=घनानंद
}}
:::::'''सवैया'''<br><br>
पहिले घन-आनंद सींचि सुजान कहीं बतियाँ अति प्यार पगी।<br>
अब लाय बियोग की लाय बलाय बढ़ाय, बिसास दगानि दगी।<br>
अँखियाँ दुखियानि कुबानि परी न कहुँ लगै, कौन घरी सुलगी।<br>
मति दौरि थकी, न लहै ठिकठौर, अमोही के मोह मिठामठगी।। 10 ।।<br>
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