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{{KKRachna
|रचनाकार=घनानंद
}}
:::::'''सवैया'''<br><br>
क्यों हँसि हेरि हियरा अरू क्यौं हित कै चित चाह बढ़ाई।<br>
काहे कौं बालि सुधासने बैननि चैननि मैननि सैन चढ़ाई।<br>
सौ सुधि मो हिय मैं घन-आनँद सालति क्यौं हूँ कढ़ै न कढ़ाई।<br>
मीत सुजान अनीत की पाटी इते पै न जानियै कौनै पढ़ाई।। 11 ।।<br>
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