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मैं भावों का राजकुमार. . . जिधर देखता में मैं वसंत बिछ जाता भू पर, उठाती उठती ऊपर दृष्टि
बाज सदृश जब, यह सारा संसार
उठ जाता है स्वर्गलोक तक, पाने को मेरी करुना करुणा की वृष्टि
लघु रज के कण करते नित श्रृंगार
भावों कीभाषा की भाषा जैसे अनुगामी, निखिल समस्टि रूप में व्यष्टि
अम्बर मैं, भूतल मैं, पारावार
शून्य, काल, नक्षत्र, ग्रहों पर जाता हूँ टेकता अगम की यष्टि
विश्व मंच पर प्रकट हुई जो शेक्सपीयर की अद्भुत नाट्य-कला-सी
पहने कोमल कविता का गलहार
कालिदास कवी कवि की कुटिया में खेली मृगछौनों से शकुन्तला-सी
छवि की मोहक प्रतिमा जो सुकुमार,
मानस की मानसी, सूर के अंध नयन की ज्योति प्रखर चपला-सी
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