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मैं कृतज्ञ हूँ / त्रिलोचन

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{{KKRachna
|रचनाकार=त्रिलोचन
|संग्रह= चैती/ त्रिलोचन}} {{KKCatKavita}}<poem>
नहीं हूँ किसी का भी प्रिय कवि मैं
 
ज़रा देर से ही सही मुझे यह ज्ञात हुआ
 
आज मैं कृतज्ञ हूँ
 
जाने अनजाने हर किसी का
 
और यह हर किसी का व्यूह
 
मुझे त्रासता नहीं है
 
एक एक को मैं अलगाता हूँ
 
पास चला जाता हूँ
 
कंधे पर हाथ रखकर कहता हूँ
 
अपनी कहो
 
अपना ज़माना ज़रा और है
 
कोई किसी की नहीं सुनता
 
तो भी हर कोई हर किसी के पास खड़ा है
 
हर कोई अपना अधिवक्ता है
 
ऎसे में
 
कोई यदि प्रिय कवि है
 
तो यह उस कवि के लिए अच्छा है
 
कविता से मिलता ही क्या कुछ है
 
रायल्टी के थोड़े पैसे मिल जाएँ यही बहुत है
 
पैसों का अर्थ आज कौन नहीं जानता
 
(मांग कर खाना असंभव है देगा कौन
 
चर्चा हो तो भी कम लाभ नहीं
 
भाषा बाज़ार की है बात मगर जी की है
 
यदि मेरी बात मेरी भाषा के ओंठों को
 
पार नहीं कर पाती तो भी क्या बुरा है
 
कह-कहवाव से भी अलग
 
कभी कभी बात होती है
 
मेरी कविताओं के सपने सब मेरे हैं
 
मुझे तो प्रसन्नता है
 
यदि मेरे सपनों को कोई भी नहीं कहता
 
मेरे हैं
</poem>
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