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16:08, 19 जुलाई 2011
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घिरा रहातुमने मुझे अच्छा आदमी कहाशुभमैं, काँप गयाहिलती हुई पत्ती परथरथरातीओस की बूँद-चिन्तकों सा !तुमनेमुझे 'अच्छा आदमी' कहामैं सिहर उठाडाल सेटूटेकोट में टंक रहे उस फूल-सा,जो किसी को अच्छा लगा था।'अच्छा आदमी' फिर कहा,तुमने मुझेऔर मैं भयभीत हो गया हूँभेड़ियों के बीच मेमने-साजंगल में जैसे घिर गया हूँ।'अच्छा आदमी' जब-जब कोई कहता हैबिछा रहाबहुत डर लगता है।
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