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इस बस्ती के लोग / सुरेश यादव

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बचपन भरी बरसात मेंपढ़ी बेच डाले हैं अपने छोटे-छोटे घरखरीद लाये हैं एक बड़ा-सा आकाशइस बस्ती के लोगबैठे हैं जिन डालों परकाटते उन्हीं को दिन-रातकालिदास होने का भ्रम पाले हुए हैंइस बस्ती के लोगअक्सर इनकी चीखों काइनके दर्दों से कोई रिश्ता नहीं होताकिसी और सुनी थीके जुकाम पर बेहाल होते हैंइस बस्ती के लोगचूल्हे - इन्हीं के होते हैंजिनमें उगती है घाससहलाते हैं हरापन इसकाथकती नहीं नज़रें इनकीप्यासे कौवे की कहानीजाने किस नस्ल के रोमानी हैंजिसनेइस बस्ती के लोग.
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