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आओ लौट, सुभाष! न अब दर-दर की ठोकर खानी होगी
आज तुम्हींको लाल किले पर विजय-ध्वजा फहरानी होगी
आज अमर कवि के स्वप्नों का नंदन उतर पड़ा है भूपर हिमापति हिमपति खड़ा दहाड़ रहा है किये तिरंगा झंडा ऊपर
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