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अलकों में मुक्ताहल भरके
भाल बीच शशि बेंदी बिंदी भर केहँसी सिंगार सिँगार सोलहों करकेनभ पर खड़ी -खड़ी
फूलों ने की हँसी ठिठोली
किसे रिझाने चातकी चकई बोली
वह न लाज से हिली न डोली
भू में गड़ी -गड़ी
चंदन -चर्चित अंग सुहावनझिलमिल स्वर्नांचल मन भावनस्वर्णांचल मनभावन
चम्पक वर्ण, कपोल लुभावन
आँखें बड़ी -बड़ी
आज तो पूनो मचल पड़ी
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