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Kavita Kosh से
मुख पर घन-अवगुंठन झीना
रो-रो दृग नलिनी श्री-हीना
करुण , सजल किरणों की वीणा
खिल-खिल हँसती हुई पुलिन पर
मिल न सकेगी अब से
चाँदनी विदा ले रही सबसे