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Kavita Kosh से
हे परशुराम!
जीवन भर आप कंधे पर फरसा लिए घूमते रहे,
अपने अवतार होने की खुशी ख़ुशी में झूमते रहे,
आपने यह कभी नहीं सोचा
कि आपका युग समाप्त हो समाप्त हो चुका है,
आपकी नस-नस में वह जहर व्याप्त हो चुका है
जो आपके कुल पराक्रम को ठंढा ठंडा कर देगा.
आपकी सब कीर्ति-कथायें बटोरकर
कितनी मंद हो गई थी आपकी दृष्टि
आपकी जड़ता पर
यद्यपि लक्ष्मण के तेवर बदल गए थे;
परन्तु राम मुस्कुराते हुए आगे निकल गए थे;
उन्होंने समझ लिया था