भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
प्राण! तुमको देख मैं मंजीर-सी बजने लगी
सांस साँस में तुमने जलाए जलाये दीप, मैं हँसने लगी थी
प्रेम की मनुहार पाकर, स्वप्न में बसने लगी थी
पी गयी ज्वाला अमरता की तुम्हारी दृष्टि से मैं
अरुण पल्लव से सुकोमल हाथ में ले हाथ मेरा
फुल्ल कुसुमों से किया अभिषेक तुमने , नाथ! मेरा
माधवी वन में न जाने सो गयी कब, गर्विता मैं?
कब गये थे छोड़कर सुनसान में तुम साथ मेरा
2,913
edits