भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
सुना तुमने जिसको ज़बानी मेरी
कहूँ किस तरह का नशा वह रहा
दिया जिसने दुःख दुख अनदिखा, अनकहा
कशिश प्यार की मिट न पायी कभी
बड़ी बढ़ी उम्र के साथ वह और भी
दिया था जिसे दिल के तलघर में दाब
नशीली हुई और भी वह शराब
'कटी साथ उसके जो रातें कभी
खिंची खिँची दिल के परदे पे हैं आज भी
कभी प्यार लेना निगाहों से भाँप
कभी बात चलने की , सुनते ही , काँप
पलटकर छिपा लेना आँसू की बूँद
हथेली से देना मेरे होंठ होँठ मूँद
कभी मुँह पे घिरना उदासी का रंग
कभी छेड़कर मुस्कुराने का ढंग
वे दिलकश अदायें, हँसी, कहकहे 
मुझे आज तक भी हैं तड़पा रहे
करूँ जोग, -जप लाख गीता पढूँ
हिमालय की चोटी पे भी जा चढ़ूँ
नहीं इससे बचने का कोई उपाय
ये वह दर्द है , जान लेकर ही जाय
<poem>
2,913
edits