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{{KKRachna
|रचनाकार=पूनम सिंह
|संग्रह= }}
<poem>
माँ की सीख थी
दुख में कभी घुटनों के बल नहीं गिरना
धरती का धीरज ले
पेड़ की तरह अडिग रहना
मौसम का शीत ताप सहना
गुलमोहर की तरह हँसना
पतझड़ के उदास दिनों में भी
हरी गंध सबुज रंग सी दिखना बिटिया
दुख पीना
दर्द सेना
खुश रहना
माँ की सीख थी
जीवन की बगिया में बसंत की अगुआनी
हर पल करना बिटिया
उसकी अगुआई के होते हैं कई माईने
अपनी शाखों पर बनने देना
मधुमक्खियों के छत्ते
चिड़िया चुनमुन के घोंसले
पसरने देना लताओं को फुनगियों तक
हाँ! पेड़ के खोखल में कभी
विषधर को पनाह मत देना
माँ की सीख थी
मन के कुंए में
खामोश पानी की तरह
थिर रहना बिटिया
उठाना रेत समय में
नदी के मुहाने रखे हर पत्थर को
पर सूखे इनार की जगत पर कभी
औंधी लटकी डोल की तरह
मत झुकना
माँ मैंने तुम्हारे कहे
एक एक शब्द का
अक्षरशः पालन किया
दुख में कभी घुटनों के बल नहीं गिरी
सूखे कुएं में कभी
औंधी लटकी डोल की तरह नहीं झुकी
मैंने समो दिया कुएं में समन्दर
और भर दिया
जगत पर खाली पड़ी सुराहियों को
लेकिन मेरा अन्तर घट
उसमें तो हुसैन की अतृप्त प्यास
समुद्री विलाप कर रही है माँ
उस समन्दर का मैं क्या करूँ
कहाँ समोऊँ उसे बोलो?
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=पूनम सिंह
|संग्रह= }}
<poem>
माँ की सीख थी
दुख में कभी घुटनों के बल नहीं गिरना
धरती का धीरज ले
पेड़ की तरह अडिग रहना
मौसम का शीत ताप सहना
गुलमोहर की तरह हँसना
पतझड़ के उदास दिनों में भी
हरी गंध सबुज रंग सी दिखना बिटिया
दुख पीना
दर्द सेना
खुश रहना
माँ की सीख थी
जीवन की बगिया में बसंत की अगुआनी
हर पल करना बिटिया
उसकी अगुआई के होते हैं कई माईने
अपनी शाखों पर बनने देना
मधुमक्खियों के छत्ते
चिड़िया चुनमुन के घोंसले
पसरने देना लताओं को फुनगियों तक
हाँ! पेड़ के खोखल में कभी
विषधर को पनाह मत देना
माँ की सीख थी
मन के कुंए में
खामोश पानी की तरह
थिर रहना बिटिया
उठाना रेत समय में
नदी के मुहाने रखे हर पत्थर को
पर सूखे इनार की जगत पर कभी
औंधी लटकी डोल की तरह
मत झुकना
माँ मैंने तुम्हारे कहे
एक एक शब्द का
अक्षरशः पालन किया
दुख में कभी घुटनों के बल नहीं गिरी
सूखे कुएं में कभी
औंधी लटकी डोल की तरह नहीं झुकी
मैंने समो दिया कुएं में समन्दर
और भर दिया
जगत पर खाली पड़ी सुराहियों को
लेकिन मेरा अन्तर घट
उसमें तो हुसैन की अतृप्त प्यास
समुद्री विलाप कर रही है माँ
उस समन्दर का मैं क्या करूँ
कहाँ समोऊँ उसे बोलो?
</poem>