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{{KKRachna
|रचनाकार=अरविन्द श्रीवास्तव
|संग्रह=
}}
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<Poem>
इतिहास से पढ़ाई की और करता हूँ चाकरी
कविता की
करता हूँ चौका वर्तन
झाड़ू-बहारू
रोपता हूँ फूल-पत्तियाँ
लगाता हूँ उद्यान
सौंपता हूँ उसे दिल-दिमाग
शौर्य-पराक्रम
सपने सारे के सारे
करता हूँ इतना ज्यादा प्रेम
कि अक्सर सहमी,
सशंकित आँखों से
देखती है कविता मुझे!
</poem>
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इतिहास से पढ़ाई की और करता हूँ चाकरी
कविता की
करता हूँ चौका वर्तन
झाड़ू-बहारू
रोपता हूँ फूल-पत्तियाँ
लगाता हूँ उद्यान
सौंपता हूँ उसे दिल-दिमाग
शौर्य-पराक्रम
सपने सारे के सारे
करता हूँ इतना ज्यादा प्रेम
कि अक्सर सहमी,
सशंकित आँखों से
देखती है कविता मुझे!
</poem>