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|रचनाकार=प्रणय प्रियंवद
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सबसे सुखद क्षण वे थे मेरे
जब कई दिनों से भूखे इंसान को भर पेट खाते हुए देखा
देखा रंगों की दुनिया से उदासीन चित्रकार को तूलिका पकड़े हुए

जब डाकिये को देखा कई महीनों के बाद
कई रंगीन लिफाफे लाते हुए अपने दरवाजे की ओर
जब देखा कि एक लफ्फाज नेता के भाषणों में
जनता की कोई दिलचस्पी नहीं रही
जब धर्म के सिवाय भी लोगों की नज़रें
दूसरी समस्याओं पर गयीं
सबसे सुखद क्षण वे थे मेरे

जब एक स्थानीय कलाकार की मृत्यु पर
कस्बे की दुकानें बन्द रहीं
एक दुर्घटना में मारे गए सैकड़ों लोगों की
असामयिक मृत्यु पर
एक छोटे से गांव में मृत आत्माओं के लिए
प्रार्थनाएँ की गईं
सबसे सुखद क्षण वे थे मेरे।
</poem>