भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आदिल रशीद |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <Poem> kalagarh ki yadon ke naam ek kavita /aadil rasheed…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=आदिल रशीद
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<Poem>
kalagarh ki yadon ke naam ek kavita /aadil rasheed
यादो के रंगों को कभी देखा है तुमने

कितने गहरे होते हैं

कभी न छूटने वाले

कपडे पर रक्त के निशान के जैसे

मुद्दतों बाद आज आया हूँ मैं

इन कालागढ़ की उजड़ी बर्बाद वादियों में

जो कभी स्वर्ग से कहीं अधिक थीं

जाति धर्म के झंझटों से दूर

सोहार्द सदभावना प्रेम की पावन रामगंगा

तीन बेटियों और एक बेटे का पिता हूँ मैं आज

परन्तु इस वादी मे आकर

ये क्या हो गया

कौन सा जादू है

वही पगडंडी जिस पर कभी

बस्ता डाले कमज़ोर कन्धों पर

जूते के फीते खुले खुले से

बाल सर के भीगे भीगे से

स्कूल की तरफ भागता ,

वापसी मे

सुकासोत की ठंडी रेट पर

जूते गले में डाले

नंगे पैरों पर वो ठंडी रेत का स्पर्श

सुरमई धुप मे

आवारा घोड़ों

और कभी कभी गधों को

हरी पत्तियों का लालच देकर पकड़ता

और उन पर सवारी करता

अपने गिरोह के साथ डाकू गब्बर सिंह

रातों को क्लब की

नंगी ज़मीन पर बैठ फिल्मे देखता

शरद ऋतू में रामलीला में

वानर सेना कभी कभी

मजबूरी में बे मन से बना

रावण सेना का एक नन्हा सिपाही

और ख़ुशी ख़ुशी रावण की हड्डीया लेकर

भागता बचपन मिल गया

आज मुद्दतों पहले

खोया हुआ

चाँद मिल गया

</poem>

{{KKMeaning}}
38
edits