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पिछाण / हरीश बी० शर्मा

128 bytes added, 08:54, 8 अगस्त 2011
<Poem>
आज-काळ री छोरयाँ रासरीर रो सिरजकरंगपांच-ढ़ंग देख‘रपदारथ नैं रळा‘रछोरा-छंडा ही नींआपां नैंबडेरां रो/डेणां रोमिनख जमारो दियोमनड़ो भी डोल जावै हैपण आपां कांईं दियो पाछो ?छोरा कैवै है बातां-बातां में‘आ कामणगारी चीज घणी खाटी है’हवा निकळी, लाय लागीहाड़ तिड़क्या, राख बणीबडेरा थोड़ी मरजादा निभावै हैआभै में भिळग्या धुओं बण‘रपाणी पड़यो, फूल चुग लियाखनलैं नै पूछै .....अरे नीं, समझावैआ बाई किण री है,आ बात बतावै है।....
माटी में नांव,
हवा में सांस,
अर पाणी में हाड़।
पैला ना तो की हा,
अबै ई कीं कोनी।
</Poem>
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