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Kavita Kosh से
<poem>
मुँह चिढ़ाती
लम्बे -चौड़े पुल को
सूखती नदी ।
शुद्ध आक्सीजन भी
वश न चला ।
रात होते ही
गोलबन्द हो गये
चाँद -सितारे ।
घिर गया है
विषैली लताओं से
जीवन - वृक्ष ।