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Kavita Kosh से
छीन मत हमसे पुतलियों की थिरकती ख़ुशबू
अपनी लट खोल के खोलके छितरा दे, बहस रहने दे
ज़िन्दगी ऐसे ही मस्ती में गुज़र जाने दे