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Kavita Kosh से
गूंगे तो होते नहीं हैं पेड़
बोलते हैं, बतियाते हैं
बसंत हो या पततझर पतझर
हरर मौसम का गीतत गाते हैं पेड़
ककभी कोपलों में खिलकर