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<poem>आसमाँ से दीप आज उतरे हैंचारों तरफ़ यहाँ वहाँ बिखरे हैंचाँदनी की चूनर ज़मीन पर हैगोटे-गोटे भी सभी उभरे हैं हर किरन उजाले की बताती हैज़िंदगी दिया है साँस बाती हैप्यार जो मिले तो सब वार दे वहींऔर न मिले तो बड़ी थाती है क्या शिकायत करें उस अँधेरे सेहम खुशी से डूबे औ उबरे हैंआसमाँ से दीप आज उतरे हैंचारों तरफ़ यहाँ-वहाँ बिखरे हैं दो दिए नयन के मेरे व तेरेशाम जले और जले हैं सवेरेहरदम यही तो आस मन में रहीमिट के रहेंगे हमारे अँधेरे कुछ न हुआ तो भी कोई ग़म नहींशीशों के आगे हम तो खरे हैंआसमाँ से दीप आज उतरे हैंचारों तरफ़ यहाँ-वहाँ बिखरे हैं</poem>